महाशिवरात्रि का पावन पर्व और उसका महत्त्व
By Aashish Patidar Feb 21 2020 Mahashivratri
भारत देश वैसे तो धर्म एवं आस्था के प्रतीक के रूप में पूरे विश्व में विख्यात है। भारत देश त्योहारों के देश के नाम से भी पूरे विश्व में जाना जाता है। भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म में कई रीति-रिवाजों को महत्व दिया गया है एवं उनके अनुसार पर्व त्योहारों की परंपरा अनादि काल से चली आ रही है। सत्य सनातन धर्म में भगवान शिव को बहुत अधिक महत्व दिया गया है एवं उन्हें देवाधिदेव के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव ही हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार एक ऐसे देव हैं जो बहुत शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं एवं अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाएँ पूरी करते हैं एवं मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। उन्हें किसी भी प्रकार के छद्म, छलावे या आडंबर की आवश्यकता नहीं है, वह भक्त के भक्ति भाव को ही समझ कर अपना पूजन स्वीकार करते हैं।
भक्तों द्वारा उन्हें विभन्न प्रकार के नाम से उत्पादित कर पुकारा जाता है, जैसे भोले शंकर, वाघ अंबर, महादेव, देवाधिदेव इत्यादि| सभी प्रकार से वे जाने जाते हैं एवं कल्याणकारी देवता के रूप में सनातन धर्म में माने जाते है।
वैसे तो प्रत्येक माह में एक शिवरात्रि होती है, परंतु फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी को आने वाली इस शिवरात्रि का अत्यंत महत्व है, इसलिए इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है। वास्तव में महाशिवरात्रि भगवान भोलेनाथ की आराधना का ही पर्व है, जब धर्मप्रेमी लोग महादेव का विधि-विधान के साथ पूजन अर्चन करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस दिन शिव मंदिरों में बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है, जो शिव के दर्शन-पूजन कर खुद को सौभाग्यशाली मानती है।
महाशिवरात्रि के दिन शिव जी का विभिन्न पवित्र वस्तुओं से पूजन एवं अभिषेक किया जाता है और बेलपत्र, धतूरा, अबीर, गुलाल, बेर, उम्बी आदि अर्पित किया जाता है। भगवान शिव को भांग बेहद प्रिय है अत: कई लोग उन्हें भांग भी चढ़ाते हैं। दिनभर उपवास रखकर पूजन करने के बाद शाम के समय फलाहार किया जाता है।
वैसे तो शिवरात्रि का पर्व हर मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी में माना जाता है, किंतु सत्य यह है की, सनातन धर्म में दो शुभरात्रि को बहुत अधिक महत्व दिया गया है, एक शिवरात्रि जो श्रावण कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी में आती है एवं देती फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी जो महाशिवरात्रि के नाम से भी जानी जाती हैं। फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है एवं इस महाशिवरात्रि के संबंध में पुराणों आदि में कई प्रचलित कथाएं एवं प्रसंग उपलब्ध है। आइए इन प्रसंगों की विस्तार से चर्चा करते हैं एवं जानते हैं महाशिवरात्रि का महत्व और उसको मनाने के पीछे की वजह।
(1) पुराणों के अनुसार महाशिवरात्रि को भगवान शिव के अवतरण दिवस या उद्भव दिवस के रूप में भी जाना जाता है। शिव संप्रदाय आदि की मान्यताओं एवं पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान शिव की उत्पत्ति मानी जाती है एक मुख्य कारण यह भी है इसी कारणवश फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
(2) शिव महापुराण में विदित है कि समुद्र मंथन के समय जहां एक और रत्न आभूषण, एरावत, हाथी आधी रत्न संपदा निकली थी वही सर्व ज्ञात है कि उसी में से कालकूट नामक विश्व भी उत्पन्न हुआ था जिसके कारण तीनो लोक में हाहाकार मच गया था एवं सृष्टि खतरे में आ गई थी उसी समय देव दानव यक्ष गंधर्व किन्नर आदि सभी प्राणी भगवान शिव की स्तुति करने लगे एवं उन्हें अपनी रक्षार्थ के हेतु पुकारने लगे वह समय संध्याकाल का था जिस समय कालकूट विष समुद्र के गर्भ से बाहर आया था एवं सभी प्राणियों द्वारा भगवान शिव की स्तुति संध्या वेला से प्रारंभ हो चुकी थी एवं उस स्थिति के अनंतर चलने तक एवं स्तुति काल के मध्य रात्रि के निश्चित काल तक चलने तक भगवान शिव वहां प्रकट नहीं हुए थे निश्चित काल की अवस्था में भगवान शिव ने वहां प्रकट उस कालकूट नामक विश्व का सेवन किया था एवं वह रात्रि चतुर्दशी की रात्रि थी इसी कारणवश उसे महाशिवरात्रि का नाम भी दिया गया। उसी विश्व के प्रभाव से भगवान शिव के कंठ में नीला पना गया एवं उस विष के कारण ही उन्हें अत्यधिक जलन एवं सिर में तपन महसूस होने लगी जिस कारणवश उन्होंने सर्पों की माला गले में धारण की एवं चंद्रमा को अपने मस्तक पर शोभायमान किया उसी कारणवश सभी प्राणियों के द्वारा उनका विवेक उपचारों द्वारा पूजन किया गया एवं तभी से महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाने लगा।
(3) एक अन्य घटना के अनुसार जब भगवान श्री ब्रह्मा जी एवं भगवान श्री हरि विष्णु जी के बीचवर्चस्व को लेकर भयंकर एक बिछड़ गया एवं दोनों ने यह विवाद जारी हुआ कि उनमें से श्रेष्ठ कौन है एवं युद्ध की स्थिति निर्मित हो गई तभी दोनों के मध्य एक विशालकाय अग्नि पुंज उत्पन्न हो गया उस अग्नि पुंज के देश को देखकर भगवान श्री हरि विष्णु जी एवं भगवान श्री ब्रह्मा जी आश्चर्यचकित हो गए तभी भगवान महादेव ने दोनों देव से कहा कि यदि आप दोनों में से कोई भी इस अग्नि पुंज का आदि या अंत मुझे पता करके बता देगा तो मैं उसे श्रेष्ठ समझ लूंगा पूर्णविराम इसी प्रकार जब भगवान महादेव की इस प्रकार की वाणी दोनों देशों ने सुनी तब वे इस अग्नि पुण्य का आदि एवं अंत खोजने हेतु निकल पाए भगवान श्री हरि विष्णु जी ने शुक्र का रूप धारण किया एवं वे पाताल लोक की ओर गमन घर गए इसी प्रकार भगवान श्री ब्रह्मा जी ने हंस का रूप धारण कर गगन की ओर प्रस्थान किया एवं दोनों अपने-अपने लक्ष्य की ओर बढ़ चले। भगवान श्री हरि विष्णु जी थक हार का वापस लौट आए एवं हाथ जोड़कर भगवान श्री महादेव के सामने उपस्थित हुए एवं उनसे कहने लगे कि हे प्रभु मैं इस अग्नीपथ के अंत का पता लगाने में अक्षम मुझे क्षमा कर दीजिए एवं इसी प्रकार जब भगवान श्री ब्रह्मा जी वापस लौटे तो उन्होंने हाथ में केतकी का फूल धारण कर रखा था एवं भगवान महादेव के सम्मुख उपस्थित होकर वे कहने लगे कि मैं इस अग्नि पंच के चोर का पता लगा चुका हूं एवं यह केतकी का फूल इसका प्रमाण है भगवान श्री महादेव तंत्रिका लगे त्रिकालदर्शी आदि अनादि अनंत हैं उन्हें सबूत था उन्हें सब ज्ञात था वह भगवान श्री ब्रह्मा जी के स्मिता वचन मित्र वाणी से बहुत ही कुपित हुए एवं क्रोध आवेग में उन्होंने अपने त्रिशूल से भगवान श्री ब्रह्मा जी के एक मस्तक को काट दिया एवं केतकी के पुष्प को भी छाप दिया कि तुम सभी प्रकार के पूजा उपासना कर्म में उपेक्षित रहोगे एवं वर्जित रहोगे उस समय से भगवान श्री ब्रह्मा जी 3 मस्तक के कहलाने लगे एवं जिस समय अग्निपंख की उत्पत्ति हुई थी उसी समय से महाशिवरात्रि का पर्व मनाने लगा एवं सभी देवी देवता द्वारा उनके इस अनादि अनंत रूप का गुणगान किया जाने लगा एवं तभी से यह प्रथा प्रचलन में है।
(4) एक अन्य घटना के अनुसार जो प्राचीन काल से विदित है एवं सर्वमान्य है एवं शिव भक्तों में बड़े ही विख्यात है जिसमें या माना गया है कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन भगवान श्री महादेव एवं मां पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था इसी दिन मध्यरात्रि के निश्चित काल में भगवान श्री महादेव एवं मां गौरा पार्वती ने एक दूसरे का वरण किया था एवं सात फेरे लेकर एक-दूसरे जीवनसाथी के रूप में चुना था। सभी से यह कथा प्रचलन में है एवं इस रात्रि को महाशिवरात्रि का नाम भी दिया गया है एवं इस काल को बड़ा महत्व दिया गया है जो सभी शिव भक्तों में बहुत ही विख्यात है एवं मान्यता के अनुसार इस कार्य में भगवान शिव का पूजन विशेष रूप से फलदाई होता है जो भगवान शिव के द्वारा बहुत ही एवं मनोवांछित फलों को प्रदान करने वाला माना जाता है।
(5) लिंगा पुराण के अनुसार भगवान शिव के द्वारा अग्नि बनाए गए अग्नि पुंज से ही सृष्टि का निर्माण हुआ जतिन सृष्टि का अग्नि पुण्य के द्वारा निर्माण किया गया था वहां फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी होती एक वजह यह भी है कि इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में एवं सृष्टि की उत्पत्ति के रूप में भी मनाया जाता है एवं इस दिन भगवान श्री महादेव द्वारा सृष्टि का उत्सर्जन किया गया था यह कथा भी बहुत प्रचलन में है।
उपरोक्त सभी घटनाओं का वर्णन हमारे प्राचीन ग्रंथों एवं पुराणों में पाया जाता है एवं सभी में यह विदित है कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को सभी घटनाओं का वर्णन माना जाता है इसलिए इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है एवं सभी घटनाएं महादेव के साक्ष्य प्रमाण होने के रूप में भी लिया जाता है तभी से महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है।
अन्य हिन्दू धार्मिक त्योहारों से जुड़ी बाते जानने हेतु इंस्टिट्यूट ऑफ़ वैदिक एस्ट्रोलॉजी https://www.ivaindia.com/ जुड़े रहे|
Search
Recent Post
-
Learn vedic astrology for beginners: unlock the ancient wisdom with iva
Are you intrigued by the mysteries of the cosmos? ...Read more -
Diploma in astrology through distance education: unlock your potential with iva
Astrology has been a guiding force for centuries, ...Read more -
Understanding the 12 houses of astrology: unlocking your path to self-discovery with iva
Astrology is an ancient science that helps us bett...Read more -
Name correction in numerology: unlock your true potential with iva
In today’s fast-paced world, many individuals seek...Read more -
Unlock your potential with a diploma in astrology online from iva
Are you fascinated by the stars and their influenc...Read more