सौम्य एवं शीतलता का प्रतीक चंद्र ग्रह
By Aashish Patidar May 02 2020 Astrology
खगोल विज्ञान में चंद्रमा को ग्रहण नहीं माना गया है। क्योंकि अन्य ग्रह सदैव सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं जबकि चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करता है। इसलिए खगोल शास्त्री चंद्रमा को उपग्रह की संज्ञा देते हैं। लेकिन ज्योतिषशास्त्र में चंद्रमा को एक ग्रह की कोठी में रखा गया है। इसलिए हम यहां चंद्रमा को ग्रहण मानकर ही चलेंगे।
चंद्रमा में पृथ्वी, बुध, शुक्र, शनि तथा मंगल की भांति सौरमंडल का एक सदस्य है। भारतीय ज्योतिष में मुख्य ग्रह साथ माने गए हैं जिनके नाम हैं सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि। राहु-केतु को छाया ग्रह माना गया है।
चंद्रमा के संदर्भ में पौराणिक परिचय यह है कि चंद्रमा ब्रह्मा के पुत्र महर्षि अत्रि के नेत्र जल से उत्पन्न हुए थे। इसी कारण चंद्रमा का नाम आत्रेय भी पड़ा है। चंद्रमा का विवाह प्रजापति दक्ष की अपनी 27 कन्याओं से कर दिया था। चंद्रमा की 27 पत्नियां ही 27 नक्षत्र के रूप से जानी जाती है। चंद्रमा के संबंध में एक अन्य पौराणिक कथा है कि चंद्रमा अनुसूया के तीन पुत्रों में से एक है।
यदि हम चंद्र ग्रह को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो चंद्रमा के संबंध में वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्राचीन भारतीय पौराणिक दृष्टिकोण तथा ज्योतिष दृष्टिकोण के एकदम भिन्न यथार्थ पर निर्भर करता है। चंद्रमा पर मानव के पश्चात वैज्ञानिकों ने जो तथ्य निकाला है वह यह है कि चंद्रमा में धूल एवं पर्वतों से भरे धरातल हैं तथा ऑक्सीजन नाम की कोई गैस नहीं है जिससे किसी प्राणी के होने की कल्पना की जा सके। ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा सूर्य तथा बुध का नैसग्रीक मित्र माना गया है। शुक्र, मंगल और शनि के साथ इसका समभाव माना गया है। राहु तथा केतु उसके शत्रु माने गए हैं। चंद्रमा बुध राशि में उच्च का तथा वृश्चिक राशि में नीच का होता है इसकी स्वराशि कर्क है चंद्रमा की योगकारक राशियां निम्न है जैसे मेष राशि, तुला, और मीन। चंद्रमा का प्रभाव जातक के जीवन पर 24 से 26 वर्ष की आयु तक पड़ता है। चंद्रमा का अशुभ फल कृतिका, उत्तरा, फाल्गुनी, अश्लेषा, ज्येष्ठा तथा रेवती नक्षत्र पर होता है।
चंद्रमा को चतुर्थ भाव का कारक माना गया है किंतु बली चंद्रमा ही चतुर्थ भाव सपना श्रेष्ठ फल प्रदान करता है। चंद्रमा चतुर्थ भाव में जन्मांग चक्र में पड़ा हो किंतु निर्बल हो अथवा राहु के साथ मिलकर ग्रहण योग बना रहा हो, तो ऐसी स्थिति में चंद्रमा चतुर्थ भाव में होते हुए भी अपना संपूर्ण फल नहीं देगा।
चंद्रमा को ज्योतिष शास्त्र में काल पुरुष का मन माना गया है, नवग्रहों में सूर्य और चंद्रमा को राजा की संज्ञा दी गई है, किंतु ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को सूर्य की अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया गया है । भारतीय फलित ज्योतिष में पूर्ण चंद्र को सौम्य ग्रह तथा क्षीण चंद्र को पाप ग्रह के रूप में माना जाता है।
चंद्रमा ग्रह मन का प्रतिनिधित्व करता है । इसके द्वारा जातक के मन, मानसिक स्थिति, कोमलता तथा हृदय की दयालुता के संबंध में जानकारी मिलती है। चंद्रमा के अशुभ प्रभाव से जातक आलस्य, नेत्र रोग, पांडुरोग, जल रोग या कफ से पीड़ित रहता है।
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